विमुद्रिकरण और इसके प्रभाव
18 वीं सदी तक देश में लेनदेन के रूप में सोने-चाँदी की प्रयोग किया जाता था व विदेशों से भी लेन देन के...
👤 देवेंद्र धर, चंडीगढ़17 Nov 2016 4:24 PM IST
18 वीं सदी तक देश में लेनदेन के रूप में सोने-चाँदी की प्रयोग किया जाता था व विदेशों से भी लेन देन के लिए इसी मुद्रा का उपयोग हो रहा था।ईस्वी 1600 से लेकर 1861 तक इस्ट इंडिया कंपनी ने देश को सोना चाँदी इंग्लैंड ले जा कर ख़ुब लूट मचाई थी ।
प्राईवेट यूरोपियन ट्रेडिंग कंपनी ने पहली बार अपनी सुविधा के लिए देश में बैंकों की स्थापना की तो पहली बार देश में काग़ज़ी मुद्रा का परिचलन और विस्तार आरंभ हुआ।मुद्रा परिचलन का क़ानून स्टैंडर्ड चार्टड बैंक की का गठन कर जेम्स विल्सन ने मुद्रा परिचालन का क़ानून बनाया जिसके अंतर्गत रू 10,20,50,100,1000 के नोट तब जारी किये गये, जो काफ़ी लोकप्रिय हुए। काग़ज़ के नोटों का नियंत्रण तब बैंक आफ इंग्लैंड के पास ही था। 1935 में मुद्रा प्रबंधन का काम भारतीय रिज़र्व बैंक को सौंपा गया। स्वतन्त्र भारत में पहले भी विमुद्रिकरण देश की जनता देखा जब सरकार ने सन् 1978 में बड़े नोटों का विमुद्रिकरण करा था और उसके दूरगामी प्रभाव सराहनीय रहे थे।ठीक इसी तरह वर्तमान सरकार ने 8 नवंबर रात्रि से ₹500 और ₹1000 के नोटों का परिचलन अचानक बंद कर दिया है। आम जनता को तब भी परेशानियाँ झेलनी पड़ी थीं लेकिन इस बार ये परेशानियाँ अपेक्षाकृत ज़्यादा हो रही है क्योंकि बड़े मूल्यवर्ग के नोट 86 प्रतिशत बदले जाने हैं। बैंकों के बाहर लम्बी लम्बी क़तारें लग रहीं हैं नई मुद्रा पर्याप्त मात्रा में वितरण के लिए उपलब्ध नहीं हैं। कुछ क़स्बों और गाँव में लोंगों ने नये नोट अभी देखे नहीं हैं। बैंकाे के बाहर भीड़ विकराल रुप धारण करती जा रही है। बैंकों के ए टी एम अपेक्षित मात्रा में नक़दी नहीं दे पा रहे है ।
बैंक अपनी व्यवस्था को दरूस्त करने में दिन रात जुटें हैं।सिर्फ़ नक़दी आभाब को ठीक करने की ज़रूरत है कुल मिलाकर आम जनता विमुद्रिकरण से प्रसन्न है। यह एक अस्थाई दौर है। जब भी कोई परिवर्तन होता है मुश्किल भी आती है और विरोध भी होता है। देश में अवैध और समांतर अर्थ व्यवस्था के चलते भ्रष्टाचार,कालाबाज़ारी नक़ली नोटों का चलन ,हवाला, आतंकवाद,राजनैतिक अपराध आदि बढ़ते जा रहे थे। मुद्रा स्फिति, मुद्रा अवमूल्यन ज़ोर पकड़ रहा था।बेनामी भू सौदे हद से बढ़ गये । कम से कम देश में व्याप्त काले धन को बैंकिंग व्यवस्था में लाना ज़रूरी हो गया था। राजनैतिक दल यद्यपि यह कह रहे कि सरकार का यह पग देश के हित में है वे नोट की सियासत से वोट लेने का प्रयास करने में लगें है। बड़े मीडिया हाउस ठीक से नहीं सो पा रहें है। ख़बरों को बड़ा चडा कर परोस रहे है। विमुद्रिकरण के निकटगामी प्रभाव दिखने शुरू हो गये हैं रूपया डालर के मुक़ाबले कुछ पैसे मज़बूत हुआ है। बैंकों की बचत बैंक राशियों में प्रर्याप्त वृद्धि हुई है। जाली नोटों की रोक के चलते कश्मीर में पत्थर फैंक आंदोलन ढ़ीला पड़ रहा है।एक अनुमान के अनुसार 31 मार्च 2017 तक 5.50 करोड़ रूपये बैंकिंग व्यवस्था में वापिस आना अपेक्षित है।
सरकार की इच्छा शक्ति और मनशा पर कोई सवाल उठाना उचित नहीं होगा।अगर कहीं कमी पाई जा रही है तो वो नीति के कार्यान्वयन में हैं। यहाँ तक भी अनुमान लगाये जा रहे है कि छापे गये नये नोट बैंकों के ए टी एम में ठीक से सैट नहीं हो पा रहे हैं इसी बजह से नोट भरने में परेशानियाँ आ रही है। वित मंत्रालय से संबंद्ध अधिकारियों को विमुद्रिकरण से पहले विधिवत इस कार्य की समीक्षा कर उचित पग उठाने चाहिए थे ।
देवेंद्र धर, चंडीगढ़
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