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सूर्य अराधना का महा पर्व मकर संक्रांति

मकर संक्रांति पर्व एक बदलाव और परिवर्तन का प्रतीक है। इस पर्व को सूर्य पर्व के नाम से भी जीना जाता...

👤 Davinder kumar Dhar18 Jan 2017 10:00 PM IST
सूर्य अराधना का महा पर्व मकर संक्रांति
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मकर संक्रांति पर्व एक बदलाव और परिवर्तन का प्रतीक है। इस पर्व को सूर्य पर्व के नाम से भी जीना जाता है।
इस दिन से सूर्य की दिशा बदलती है आैर उसकी उत्तरायणी यात्रा आरंभ होती है।उसकी इस दिशा बदलाव से मौसम में भी परिवर्तन होता है।

मकर संक्रांति के साथ कई पौराणिक मान्यताएँ जुड़ी है।एेसा माना जाती हा कि इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनिदेव से मिलने स्वंय उनके घर जाते है। इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी।ऐसा भी कहा जाता है कि इसी दिन गंगा जी भागीरथी मुनि के आश्रम से हो कर सागर में गिरी थी।


मकर सक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं।

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है।

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है।

मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है।

महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली ।
इस पर्व पर तुला दान का काफ़ी महत्व है । दानी पुरूष सुबह स्नान कर व काले कपड़े पहन कर अपने शरीर के वज़न का अन्न दान कर देते है।
इस पर्व पर माश की दाल और खिचड़ी का लंगर लगा कर सभी को भोजन कराया जाता है


शास्त्रों के अनुसार यह बेहद शुभ दिन ही नही है बल्कि शुभ दिनों का आरंभ माना जाता है।

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